कुंडलियाँ छंद

                   कुण्डलिया छंद :-

मन की लंका में बैठे , काम क्रोध मद लोभ।
बाहर रावण फूंक कर , खुशी मनाते लोग ।।
खुशी मनाते लोग , रावण वध क्या समझे।
जिसकी जैसी चाह, लोग वैसा ही करते।।
काम क्रोध लोभ मद, मन मे बसाये मिलते।
कह पुरोहित सुनिए , यह कहता है आज  मन ।।
                                         -: कवि राजेश पुरोहित

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