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कविता

*विषैली हवा* हर कोई शहर में आकर बस रहा। नित नई समस्याओं से घिर रहा।। बीमार रहते है शहर वाले अक्सर। विषैली हवा का असर दिख रहा।। काट दिये शहरों में सब पेड़ो को। इमारतों में घुट घुट कर पिस रहा।। धूल , धुँआ इस कदर फैला देखो। जिंदगी के दिन आदमी गिन रहा।। गरीबी देखी नही जाती इंसान की। तन ढँकने को वह पैबन्द सिल रहा।। शूल सारे राह के अब कौन उठाता। पुरोहित सब मतलबपरस्त मिल रहा।। कवि राजेश पुरोहित 98,पुरोहित कुटी श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान पिन 326502

कविता

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दीपावली किसी त्योहार को अमीरी गरीबी में न बांटो। एक दीप जलता है सबको रोशनी देता है।। यूँ भेदभाव करोगे तो देश अखण्ड कैसे रहेगा। समता का संदेश ये  रोशनी का पर्व देता है।। किसी में इतना दम नहीं जो कैद करे उजालों को। झोपड़ीं को भी रोशन एक  दीप कर देता है।। जो सदियों से खामोश रहे वो भी आज बोल रहे। लोकतंत्र का मंदिर ये सबको न्याय देता है।। खुशियों से पटाखे राम और इकबाल चला रहे। ये वो देश है जो एकता की  मिसाल देता है।। कवि राजेश पुरोहित

कुंडलियाँ छंद

                   कुण्डलिया छंद :- मन की लंका में बैठे , काम क्रोध मद लोभ। बाहर रावण फूंक कर , खुशी मनाते लोग ।। खुशी मनाते लोग , रावण वध क्या समझे। जिसकी जैसी चाह, लोग वैसा ही करते।। काम क्रोध लोभ मद, मन मे बसाये मिलते। कह पुरोहित सुनिए , यह कहता है आज  मन ।।                                          -: कवि राजेश पुरोहित